Purvanchal Today News (नई दिल्ली) सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अफसर जज नहीं बन सकते। वे खुद तय न करें कि दोषी कौन है। किसी को भी ताकत के गलत इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट की इस टिप्पणी से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। अब सवाल ये है कि क्या यूपी में बुलडोजर के जरिए ताकत का दुरुपयोग हुआ। कोर्ट ने बुलडोजर के मामले में 15 गाइडलाइंस भी दी हैं। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने मामले पर फैसला सुनाया। 1 अक्टूबर को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट ने कहा
एक आदमी हमेशा सपना देखता है कि उसका आशियाना कभी ना छीना जाए। हर एक का सपना होता है कि घर पर छत हो। क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं, जो किसी अपराध में आरोपी हो। हमारे सामने सवाल यही है। कोई आरोपी हो या फिर दोषी हो, क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया का पालन किए गिराया जा सकता है? हमने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में न्याय के मुद्दे पर विचार किया। और यह भी कि किसी भी आरोपी पर पहले से फैसला नहीं किया जा सकता।
अगर कोई अधिकारी किसी व्यक्ति का घर गलत तरीके से इसलिए गिराता है कि वो आरोपी है तो यह गलत है। अगर अधिकारी कानून अपने हाथ में लेता है तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह गैर-कानूनी है। आरोपी के भी कुछ अधिकार होते हैं। सरकारें और अधिकारी बिना कानून का पालन किए किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मनमाना और एकतरफा एक्शन नहीं ले सकते, जो आरोपी या दोषी हो। अगर कोई अफसर ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए एक सिस्टम होना चाहिए। यह मुआवजा भी हो सकता है। गलत नीयत से लिए गए एक्शन पर अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता।
अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, ऐसे में उसकी प्रॉपर्टी को गिरा देना पूरी तरह असंवैधानिक है। अधिकारी यह तय नहीं कर सकते हैं कि कौन दोषी है, वे खुद जज नहीं बन सकते कि कोई दोषी है या नहीं। यह सीमाओं को पार करना होगा। बुलडोजर एक्शन का डरावना पहलू दिखाता है कि ताकत के गलत इस्तेमाल को इजाजत नहीं दी जा सकती है। ऐसा एक्शन किसी दोषी के खिलाफ भी नहीं लिया जा सकता है। अधिकारी का ऐसा एक्शन गैरकानूनी होगा और वो अधिकारी कानून अपने हाथों में लेने का दोषी होगा।
जब किसी कंस्ट्रक्शन को अचानक गिराने के लिए चुना जाता है और दूसरे कंस्ट्र्क्शन पर एक्शन नहीं लिया जाता तो बदनीयती झलकती है। ऐसी धारणा बनती है कि कार्रवाई किसी निर्माण पर नहीं की गई है, बल्कि उस व्यक्ति को दंडित करने के लिए की गई है, जिसका केस कोर्ट में है।
एक घर सामाजिक-आर्थिक तानेबाने का मसला है। ये सिर्फ एक घर नहीं होता है, यह वर्षों का संघर्ष है, यह सम्मान की भावना देता है। अगर इसे ले लिया जाता है तो अधिकारी को यह साबित करना होगा कि घर गिराना ही आखिरी विकल्प था। क्रिमिनल जस्टिस का नियम है कि जब तक किसी को दोषी करार नहीं दिया जाता, तब तक वो निर्दोष होता है। अगर उसका घर गिरा दिया जाता है तो यह पूरे परिवार को दंडित करना हुआ। संविधान में इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस
1. अगर बुलडोजर एक्शन का ऑर्डर दिया जाता है तो इसके खिलाफ अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए।
2. रातोंरात घर गिरा दिए जाने पर महिलाएं-बच्चे सड़कों पर आ जाते हैं, ये अच्छा दृश्य नहीं होता। उन्हें अपील का वक्त नहीं मिलता। 3. हमारी गाइडलाइन अवैध अतिक्रमण, जैसे सड़कों या नदी के किनारे पर किए गए अवैध निर्माण के लिए नहीं है।
4. शो कॉज नोटिस के बिना कोई निर्माण नहीं गिराया जाएगा।
5. रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए कंस्ट्रक्शन के मालिक को नोटिस भेजा जाएगा और इसे दीवार पर भी चिपकाया जाए। 6. नोटिस भेजे जाने के बाद 15 दिन का समय दिया जाए।
7. कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को भी जानकारी दी जाए।
8. डीएम और कलेक्टर ऐसी कार्रवाई पर नजर रखने के लिए नोडल अफसर की नियुक्ति करें।
9. नोटिस में बताया जाए कि निर्माण क्यों गिराया जा रहा है, इसकी सुनवाई कब होगी, किसके सामने होगी। एक डिजिटल पोर्टल हो, जहां नोटिस और ऑर्डर की पूरी जानकारी हो।