Purvanchal Today News: (रांची)। जा झार के। यह जुमला चाहे जिस संदर्भ में कहा गया हो, लेकिन सत्ता की सियासत में झारखंड की जनता इससे इत्तेफाक नहीं रखती है। 24 साल की झारखंड की चुनावी सियासत इसकी गवाह है। बीते 24 साल में झारखंड विधानसभा चुनाव में कोई भी दल अपने अकेले के दम पर बहुमत हासिल करने का कमाल नहीं दिखा सका है। 2024 में आज 20 नवंबर को मतदान के साथ दूसरे और अंतिम चरण में 38 सीटों पर 1.24 करोड़ मतदाता 528 उम्मीदवारों का भविष्य तय कर देंगे। इसके साथ ही राज्य में चुनाव पूरे हो जाएंगे, लेकिन प्रश्न यही है कि पिछले चार चुनाव की तरह राज्य के मतदाता किसी भी दल को बहुमत से दूर रखने की लीक पर चलेंगे या इस बार कुछ नया करेंगे, क्योंकि आज तक विधानसभा चुनाव में झारखंड ने किसी एक दल को यह नहीं कहा है कि जा झार के।
81 सदस्यीय विधानसभा वाले राज्य में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भाजपा का है, जब उसने 2014 में 37 सीटें जीती थीं। 20 नवंबर को जिन 38 सीटों पर वोट डाले जाएंगे, उनमें राजग की ओर से भाजपा 32 और आजसू छह सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इंडिया गठबंधन की ओर से झामुमो 20, कांग्रेस 12, सीपीएम माले 4 और राजद दो सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। पीछले चुनाव में भाजपा को 12, झामुमो को 13, कांग्रेस को 8, आजसू को 2 और अन्य को 3 सीटों पर सफलता मिली थी। दूसरे चरण में भाजपा का झामुमो से 17 तो कांग्रेस से 10 सीटों पर मुकाबला है
विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 41 सीट का है। बीते चार चुनाव में अब तक कोई भी दल अपने दम पर यह आंकड़ा हासिल नहीं कर पाया है। भाजपा 2014 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बावजूद बहुमत से चार सीट पीछे रह गई। इस कीर्तिमान को कोई भी दल नहीं तोड़ पाया है। झामुमो ने बीते चुनाव में 30 सीटें, कांग्रेस ने 16 सीटें जीत कर अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। इस बार के चुनाव में भाजपा ने जमीन जिहाद, वोट जिहाद और लव जिहाद को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है। इसके जवाब में झामुमो की अगुवाई में इंडिया गठबंधन ने आदिवासी अस्मिता को मुद्दा बनाया है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तरह इस चुनाव में भी सामाजिक न्याय के मुद्दे को धार देते हुए जाति गणना कराने, आरक्षण की सीमा बढ़ाने की घोषणा की है। चुनाव में भाजपा ने आजसू, लोजपा और जदयू से तो झामुमो ने राजद, कांग्रेस और वाम दलों से गठबंधन किया है।
ये है झारखंड में दलीय रणनीति
भाजपा की रणनीति ओबीसी वोट बैंक को साधने के साथ जेएमएम के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने की है। जेएमएम की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन में जेएमएम का चुनाव प्रचार आदिवासी वोट बैंक पर केंद्रित है। कांग्रेस, राजद और वाम दल ओबीसी वोट बैंक को साधने की राजनीति कर रहे हैं। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर 2014 के चुनाव की तरह पार्टी ओबीसी वोट बैंक को अपने पक्ष में एकजुट रख पाई और आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगा पाई तो उसके लिए सत्ता हासिल करने की राह आसान हो सकती है।
चर्चा में नीतीश कुमार , क्यों नहीं किए प्रचार
इस चुनाव में राजग और इंडिया ब्लॉक के इतर नीतीश कुमार खासा चर्चा में रहे। झारखंड में भाजपा और जदयू का गठबंधन है, बावजूद इसके बिहार के सीएम नीतीश कुमार की चुनाव प्रचार से दूरी चर्चा का विषय है। नीतीश ने झारखंड में प्रचार नहीं किया है।