Tripathi Gyanendra ( लखनऊ ): समाजवाद की पगडंडियों पर सियासत के चप्पल घिसकर बिहार की राजनीति में शीर्ष पर पहुंचे नीतीश कुमार अब हिंदुत्व के एक्सप्रेसवे पर फर्राटे भरने को तैयार हैं। फर्राटे भी ऐसे की जनता मोदी का हिंदुत्वा भूलकर सुशासनबाबू के जयकारे लगा बैठे। सुशासन बाबू की चाल में यह परिवर्तन यूं ही नहीं आ टपका है। सबसे पहले समाजवाद में नमाजवाद गहरे घुसा है। बीजेपी में टपोरी लपुआ और छपरी दिखे हैं। फिर मोदीजी जदयू के घर में आ धमके हैं। तब कहीं जाकर नीतीश के नयन खुले हैं।
बिहार बदले न बदले, लेकिन नीतीश कुमार बदल रहे हैं। इसे आप मोदी की संगत कहिए या नीतीश की मजबूरी। मोदी की संगत इसलिए की मोदी ने नीतीश की समाजवादी पगडंडी को वक्फ बिल के फावड़े से इस कदर छिन्न-भिन्न कर दिया है, कि चाहकर भी नीतीश अब समाजवाद की पगडंडी पर सुरक्षित एक कदम भी नहीं चल सकते हैं। नीतीश को ये ज्ञान पटना में हुई इंडिया गठबंधन की उस रैली से प्राप्त हुआ जिसमें वक्फ बिल को कूड़ेदान में डाल देने की बात कही गई।
मुसलमानों की यहां पर उमड़ी लाखों की भीड़ ने यह साबित कर दिया कि इस बार के विधानसभा चुनाव में नीतीश बाबू की पार्टी को मुसलमानों का वह पांच फीसद मत भी नहीं मिलेगा जो पिछली बार मिला था। रही सही कसर कहीं बची भी थी तो उसको समाजवाद में नमाजवाद घुसा बीजेपी ने पूरी कर दी। बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने एक प्रेस कांफ्रेंस करते हुए पटना की रैली को मुस्लिम तुष्टिकरण का प्रमाण बाता समाजवाद पर हमला किया। सुधांशु ने विपक्ष के समाजवाद को नमाजवाद करार दिया। फिर भी नीतीश बाबू कोई मौका मुस्लिमों से समझौते का निकालते लेकिन तेजस्वी यादव ने इस अंतिम मौके को भी झट से नीतीश से छीन लिया।
तेजस्वी यादव ने मुस्लिमों की पैरवी में सुधांशु त्रिवेदी की प्रेस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दिल्ली में बैठ कर भाजपा के नेता मुझे गाली दे रहे हैं। ये टपोरी, लपुआ और छपरी हैं। इन्हें जवाब देने के लिए हमारे प्रवक्ता ही काफी हैं। मुस्लिमों के लिए तेजस्वी यादव द्वारा भाजपा नेताओं को टपोरी, लपुआ और छपरी तक कह देने के बाद नीतीश बाबू की ये हिम्मत नहीं हुई की वह मुस्लिमों को इस आधार पर मनाने की कोशिश करें कि वह अब भी मुस्लिम हितों के बड़े पैरोकार हैं। इस बीच पहली बार नीतीश की पार्टी जदयू के दफ्तर में मोदी की फोटो लगा दी गई। फिर क्या नीतीश बाबू के समाजवाद की पगडंडी पग भर चलने योग्य भी नहीं बची। बावजूद इसके नीतीश बाबू अपनी हनक से समझौता कैसे कर सकते हैं। कभी वो भी दिन थे जब होर्डिंग्स लगती थीं। बिहार में नीतीशे कुमार बा। जब बात बिहार की हो बात केवल नीतीश कुमार की हो।
नीतीश कुमार का हिंदुत्व एक्सप्रेस-वे
नीतीश कुमार ने लोहे को लोहे से काटने के फार्मूले पर काम शुरू कर दिया है। नीतीश को मालूम है कि कम सीट आने पर बीजेपी महाराष्ट्र का फार्मूला अपनाएगी और एकनाथ शिंदे की तरह उनको भी नंबर दो की जगह दिखाएगी। बात बीजेपी से अधिक सीट लाने की है तो वह इतना आसान नहीं है। पिछला चुनाव गवाह है कि बीजेपी को उसकी सीट पर उसके पक्ष में खूब वोट पड़े और उसी तरह के वोटर नीतीश की पार्टी जदयू को वोट देने से रहे। नतीजा नीतीश को समझौते में मिली आधे से अधिक सीटें गंवानी पड़ी और जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन कर रह गई। ऐसे में मुस्लिम मतों से लगभग हाथ धो चुके नीतीश ने हिंदू मतों को मजबूत करने की कवायद तेज कर दी है। लेफ्ट से राईट हुए नीतीश ने कैबिनेट में ऐसा प्रस्ताव पारित कर दिया है जो मोदी की या बीजेपी की सरकारें भी नहीं कर पाई हैं।
जिस तरह से अयोध्या में राम की जन्मभूमि पर श्रीराम का भव्य मंदिर बना है ठीक उसी तरह नीतीश सीतामढ़ी में सीता की जन्मभूमि पर सीता का भव्य मंदिर बनवाएंगे। दोनों में अंतर ये है कि राममंदिर गैर सरकारी धन से ट्रस्ट ने बनवाया है और सीता का मंदिर सरकारी धन से नीतीश कुमार बनवाएंगे। इसके लिए नीतीश कुमार ने अपनी कैबिनेट में एक दो करोड़ नहीं, 882 करोड़ की योजना को पास किया है। नीतीश को लगता है कि हिंन्दू मतदाता अब उन्हें भी वैसे ही वोट देंगे जैसे कि बीजेपी को देते रहे हैं। यह और बात है कि राम मंदिर निर्माण के बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी न केवल अयोध्या सीट हार गई बल्कि यूपी में आधा हो गई और केंद्र में महज 240 सीटों के साथ अल्पमत में आ गई। अब ये देखना है कि नीतीश की नैया मुस्लिमों की नाराजगी से डूबती है या सीता के मंदिर के नाम पर हिन्दू नीतीश की नैया को पार लगाते हैं।